कोर्ट ने क्या कहा ?


इसके साथ ही जोगिंद्रपाल सिंह भाटिया, तर्जित सिंह, सर्वजीत सिंह, सुरिंदरपाल सिंह, दलजीत सिंह, राजिंदर सिंह, सेवा सिंह, सुरिंदरपाल सिंह उर्फ डॉली, शाहबाज सिंह, सुखदेव सिंह, जसपाल सिंह, दलविंदर सिंह उर्फ पप्पा, नरेंद्र सिंह, गुरमीत सिंह, हरचरण सिंह, गुरदीप सिंह सहगल और गुरमीत सिंह उर्फ हैप्पी को भी बरी किया जाता है।

कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने ऐसे सबूत इकट्ठा नहीं किए, जिससे वह यह स्पष्ट कर सकती कि आरोपियों द्वारा बस में लगाये गये बमों में विस्फोट हुआ था या वे बिना विस्फोट के रहे और यदि उनमें विस्फोट नहीं हुआ तो उन्हें निष्क्रिय किया गया या नहीं।

इस मामले की सुनवाई में आठ प्राथमिकियां, 14 आरोप पत्र, 1,399 गवाहों और लगभग 24 न्यायाधीश शामिल रहे। इस मामले में बरी किए गए 30 आरोपियों पर हत्या, हत्या का प्रयास, भारत सरकार के खिलाफ जंग छेडने समेत आईपीसी के तहत विभिन्न धाराओं के तहत आरोपी बनाया गया था। उत्तर प्रदेश और हरियाणा के हुए ट्रांजिस्टर बम धमाकों के मामलों को बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया था।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली में बसों तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों और उत्तर प्रदेश और हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में 10 मई, 1985 को ट्रांजिस्टर बम धमाकों में 69 लोगों की मौत हो गई थी और 127 लोग घायल हुए थे। इस मामले में पुलिस ने कुल 59 लोगों को आरोपी बनाया था, जिनमें से 5 भगौड़ घोषित थे, जो कभी अदालत नहीं पहुंचे। इसके साथ ही पांच आरोपियों को ट्रायल के दौरान निचली अदालत ने 2006 में साक्ष्यों के अभाव में छोड़ दिया था। बाकी बचे 49 आरोपियों में 19 लोगों की मामले की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी और बाकी के 30 आरोपियों को अदालत ने पुलिस की लचर जांच प्रणाली के कारण बरी कर दिया है। ये सभी 30 आरोपी 1986 से जमानत पर थे।

मामले में पुलिस ने दलील दी थी कि 12 मई 1985 को पुलिस ने नारंग हाउस में छापामारी करके उसे और उसके साथियों मोहिन्द्र सिंह ओबरॉय और मनमोहन सिंह खालसा को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने दावा किया था कि उनके पास से बम, गन पाउडर, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, पिस्तौल और लोहे की रॉड बरामद की थी। इनमें से मनमोहन सिंह खालसा की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई थी।